शनिवार, 29 अगस्त 2009

आधुनिक नैतिकता

क्या ज़ायज है ?
नियम के दायरे में खेलना,
या हर हाल में विजेता होना ।
यकीनन दोनो ही,
तुम्हारा नियम के दायरे में खेलना,
मेरा हर हाल में विजेता होना।

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

वियोग के क्षण

इस वीराने अन्धियारे के बीच,
इस अल्प प्रकाशित कमरे में,
इस अर्ध रात्रि की बेला में,
मैं हूँ मेरा अकेलापन है,
सबको समेटे खामोशी की चादर है।

जागती हु‌ई मेरी आंखो में ,
बन्द पलकों के पीछे,
मेरे मन के पर्दे पर,
अगनित मनोभाव दर्शाते,
रूप तुम्हारा बिम्बित होता है।

कभी कुछ कहती हु‌ई तुम,
कभी कुछ समझाती हु‌ई तुम,
कभी बात बे बात झल्लाती हु‌ई तुम,
कभी मनुहार करती हु‌ई तुम,
अनेकों रूप तुम्हारा प्रकट होता है।

यदि मैं नींद में गहरे जा‌ऊं,
शायद सपने में तुम आ‌ओ,
या शायद सिर्फ़ नींद ही आये,
न सपने आयें न तुम आ‌ओ,
नींद में तो सब कुछ अनिश्चित है।

इन जागती आखों बन्द पलकों में,
तुमसे हो रहा है मिलन,
इनके खुलते ही है तुमसे वियोग,
नींद में स्वप्न और स्वप्न में तुम्हारे आने की अनिश्चित्ता,
इनके बीच विकल मैं और मेरा असमंजस है।

बुधवार, 19 अगस्त 2009

जिन्ना , जसवंत , रवीश और बहस जारी है

आदरणीय रवीश जी,
मैं तो आपका प्रशंसक हूं परन्तु जिस तरह से इतिहास को एक संकीर्ण दॄष्टि से और कांग्रेसी नज़रिये से देखा जा रहा है वह अनुचित है । आपका यह कहना कि मुस्लिम लीग ने १९२० के बाद अलग राह पकडी तो इस पर भी ध्यान दीजिएगा :

खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन की क्या आवश्यकता थी, क्या वह निर्णय मुस्लिम तुष्टीकरण का कांग्रेसी शुरुआत नही था । वह एक कदम भारत की राजनीति में हिंदू दक्षिणपंथ की शुरुआत, मुस्लिम लीग को एक्स्ट्रीम डिमांड की तरफ़ धकेलने वाला नही साबित हुआ ।

दूसरा ,इन बातों का भी खुलासा होना चहिए कि क्या जिन सूबों मे जिन्ना साहेब और लीग मुस्लिम शासन की मांग कर रहे थे वे अब पाकिस्तान में हैं या नहीं । जितना रिज़र्वेसन सरकारी नौकरियों में मांग रहे थे वह पाकिस्तान और भारत मिलाकर उससे ज्यादा प्राप्त है या नहीं । और क्या आज कांग्रेस की सरकार मुसलमानों को भारत में आरक्षण देने की पूर्ण तैयारी में है या नहीं तथा कुछ राज्यों में कोर्ट के दखल बावजूद कांग्रेस ने आरक्षण दिया या नहीं ।

अगर पिछले ७५ - ८० सालों की राजनीति का अवलोकन किया जाय तो यह कहना अतिसयोक्ति न होगी कि जिन बातों को १९३० में रिजेक्ट किया २००९ में वे सब पिछले दरवाजे लागू हो रही हैं पूरे सेकुलर सर्टीफ़िकेट के साथ क्योंकि कमिटेड मीडिया और सच्चर कमेटी साथ हैं और वोट बैंक पर नज़र है । इसके बाद यह बहस तो जायज है कि बटवारा क्यों हुआ और क्या जो उद्देश्य बटवारे का था वह हासिल हुआ । इस पर बहस से क्यों भागते हैं और हंगामा खड़ा करके, तथ्यों को घुमा कर असली मुद्दे को दबा देना चाहते हैं । इस पर बहस आज नही तो कल होगी ही , सेकुलरिज्म का बुखार थोड़ा कम होगा तब होगी, शायद कुछ सालों बाद ।

और अंत में आपने मुस्लिम लीग और कांग्रेस के १९३७ के संयुक्त प्रांत के समझौते की तुलना २००९ के लालू , मुलायम और पासवान से किया यह भी अनुचित है, क्योंकि यह सब जानते हैं कि २००९ के चुनाव में इनका कोई समझौता नहीं था एक सीट पर भी नहीं । तुलना अगर जायज है तो एन सी पी से जहां महाराष्ट्र में समझौता था अन्य जगह नहीं । चुनाव के बाद दोनों सरकार में शामिल हैं । दोनों का आपस में विरोध भी कम नहीं है, आखिर सुषमा स्वराज ने तो सिर्फ़ धमकी दिया सिर मुडाने का, पवार साहेब ने तो पार्टी तोड़ी । अगर आप का यह कहना ठीक है कि लीग और कांग्रेस १९३७ में साथ खड़े नहीं रह सकते थे तो चुनाव पूर्व समझौता क्यों किया था चाहे कुछ सीटों का ही सही ।

एन डी टी वी पर तो आप कमिटेड हैं चैनेल की वजह से, पर ब्लोग पर भी वही कांग्रेस प्रवक्ता वाला तेवर । माफ़ी चाहूंगा अगर कुछ अनुचित लगा हो तो मगर आपकी टिप्पड़ी का इन्तज़ार रहेगा ।आपका प्रशंसक,
August 19, 2009 1:32 AM

रवीश जी की टिप्पडी आई :

विजय जी,
मैं कांग्रेस का प्रवक्ता नहीं हूं। न तो टीवी पर न ही ब्लॉग पर। विभाजन पर क्यों नहीं बहस होनी चाहिए? आपको क्या लगता है कि बहस नहीं हुई या हो रही है? कौन सा तथ्य मैंने मोड़ दिया है मैंने। जसवंत सिंह एक प्रमाण दे दें कि किस बैठक में जिन्ना और नेहरू के बीच १९३७ में यूपी में गठबंधन सरकार बनाने का फैसला हुआ था? दे दें तो अच्छा है। मैं कह रहा हूं कि अभी तक इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है। नए तथ्य के साथ इतिहास की सोच बदलती है।

सेकुलरिज्म बुखार नहीं है। सांप्रदायिकता बुखार है। आप बात को कहीं से कहीं ले जा रहे हैं। कांग्रेस मुसलमानों के लिए आज क्या कर रही है उसका इस लेख से कोई संबंध नहीं है। मैंने जिन्ना की भूमिका के आस पास की राजनीतिक प्रक्रिया का ज़िक्र करने के लिए लेख लिखा

मुलायम का ज़िक्र इसलिए किया गया है ताकि जो इतिहास के विद्यार्थी नहीं हैं उनसे आज के रूपक के सहारे संवाद किया जा सके कि किस तरह से राजनीति में तब भी शक या गेस के आधार पर दलीलें गढ़ी जाती रही है। तुलना करने का इरादा बिल्कुल नहीं था।
August 19, 2009 9:१९ अ म

अंत में यह मैं अपने ब्लोग पर दे रहा हूं ताकि सभी अपना मत दे सकें और बहस आगे बढ़े ।

मंगलवार, 18 अगस्त 2009

अमोघ

मन कर एकाग्रचित्त ,
परिणाम से अविचलित ,
लोकचर्चा से न हो भ्रमित ,
उद्देश्य को इंगित ,
अकर्मता से विलगित ,
प्रभु को समर्पित,
ऐसा उद्यम होगा अमोघ ,
न हो संशयित ।

रविवार, 16 अगस्त 2009

स्वतन्त्रता की वर्षगांठ और शाहरुख खान की सुरक्षा जांच

आज देश स्वतन्त्रता की बांसठवीं वर्षगाठं मना रहा है, चारों तरफ़ खुशी का माहौल है । इस बीच कई दिनों से सूखे पड़े मौसम में वर्षा की फ़ुहारें, कभी हल्की तो कभी तेज, महौल की खुशी को दोगुना कर रही हैं । इस साल पूरा उत्तर भारत भारी सूखे की चपेट में है, ऐसा सूखा जो कई दशकों बाद इतना व्यापक है। पिछले दो दिनो से, इस थोड़ी देर से ही सही, हो रही इस बरसात से सभी सराबोर और खुश हो रहे हैं । बीच मे जब जब मौसम थोड़ा खुल जाता है तो बच्चे अपनी पतगें लेकर बाहर निकलते हैं और जैसे ही बारिस शुरू होती है तो वापस घर मे भाग आते हैं ।
सुबह से अनेक कार्यक्रम सभी टीवी चैनेलों द्वारा प्रसारित किये जा रहे हैं । इनमे दिन भर जगह जगह मनाये जा रहे समारोहों, खासकर लालकिले से प्रधानमन्त्री द्वारा देश के नाम सम्बोधन व प्रदेशों की राजधानियों मे हुए काय्रक्रमों की झलकियों को भी दिखाया जा रहा है । इसके साथ साथ पिछले बांसठ सालों की उपलब्धियों के अलावा कमियों और इस बीच आये सामाजिक व आर्थिक परिवर्तनों पर भी चर्चायें सभी टीवी चैनेलों पर प्रसारित की जा रही हैं । चर्चाओं से यह निकल कर आ रहा है की देश ने इन सालों में लगभग हर क्षेत्र - शिक्षा, खेल, तकनीक व आर्थिक, में बहुत तरक्की की है। यह बात भी सामने आ रही है कि भारत की युवा पीढ़ी आत्मविश्वास से भरपूर है और हर तरह की चुनौतियों से विचलित हुए बिना उनका सामना करने में सक्षम है चाहे वे देश के अन्दर से समाजिक व आर्थिक क्षेत्र से हों या देश के बाहर से आतंकवाद के रूप में हो ।
ऐसा लग रहा है कि भारत अपना अज़ादी पर्व आत्मचिन्तन के साथ भविष्य की चुनौतियों का सामना करने पर विचार करने में लगा रहा है और देश का परिपक्व मीडिया कदम मिला कर आगे बढ़ रहा है, तभी टीवी स्क्रीन के स्क्रोल पर एक खबर फ़्लैश होना शुरू होती है, लगभग दोपहर के बाद "शाहरुख खान को सुरक्षा जांच के लिये अमेरिका के एअरपोर्ट पर रोका गया"। जैसे जैसे खबर डेवलप होती है पता चलता है कि आधा घटें रोका गया, जो बाद में बढ़ कर दो घटें हो जाता है । इसके साथ - साथ शुरू हो गया भारत का चिरपरिचित ’मीडिया सर्कस’ जिसका नमूना हम सब अनेकों बार देख चुके हैं ।
अब सब कुछ छोड कर पूरा मीडिया एक खबर पर होड़ लगा देता है । चीख चीख कर मामूली से हर खबर को गैरमामूली बनाने के चक्कर मे कैसे कैसे जुमले उछाले गये इनकी बानगी देखिये : शाहरुख का अमेरिका में अपमान , शाहरुख का अपमान देश का अपमान, शाहरुख से पूछ्ताछ रेशियल डिश्क्रिमिनेशन का उदाहरण और न जाने क्या क्या ।
अब सारा माहौल जो राष्ट्रीय पर्व का था बिल्कुल बदल गया, समझदारी से सर्कस बन गया । एक व्यक्ति जो भारत मे प्रसिद्ध है किन्तु किसी राजकीय प्रोटोकाल का अधिकारी नही है उसकी जांच कैसे राष्ट्रीय अपमान का विषय हो गयी यह समझ से परे है ।
आज सब जानते हैं कि सुरक्षा की क्या स्थिति है । पश्चिमी देश और खासकर अमेरिका इस मामले में कितना सतर्क है यह बताने की आवश्यकता नहीं है । उनकी सतर्कता और सख्ती का ही नतीजा है कि उनके देश में ९/११ के बाद कोई बडी घटना नही हुई । इसके विपरीत हम कितने सतर्क हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आतंकवाद के हाथों दो प्रधानमन्त्री खोने के बाद भी, पिछले २५ वर्षों में कितनी आतंकवादी घटनाएं हुई हैं इसकी ठीक ठीक गिनती करना असंभव है । परन्तु हमारा एक ही नारा है ’ हम नहीं सुधरेंगे’ । ज़रा विचार कीजिए कुछ समय पहले संसद पर हमला हुआ तो देश कैसे स्तब्ध था, फ़िर पूरी जांच के बाद, सोच विचार कर सख्त सुरक्षा प्रबंध किये गये । करोड़ो के उपकरण लगाये गये । इस सब के बावजूद कभी किसी सांसद का कोई डुप्लीकेट या किसी सांसद की पत्नी बिना किसी जांच के और वैध प्रपत्र के, सुरक्षा को धता बता कर अन्दर पहुंच गये । ज़ाहिर है सुरक्षा जांच हमारे लिए एक गैरज़रूरी बाधा है । सुरक्षाकर्मी सिर्फ़ सल्यूट करने और आम आदमी को धमकाने के लिये प्रयुक्त होते हैं । यदि वे किसी वी आई पी की जांच करेंगे तो नौकरी से हाथ धो बैठेंगे । यही वजह है कि दिल्ली की सड़कों पर यदि कोई पुलिस वाला किसी खास को रोके तो जवाब मिलेगा ’ पता है मैं कौन हूं’ या ’मेरे पिताजी कौन हैं’ । कभी कभी तो बेचारे की पिटाई भी हो जाती है ।
ठीक यही व्यवस्था अब हमें पश्चिमी देशों और अमेरिका में भी चाहिये । आखिर हम वी वी आई पी जो ठहरे । अब प्रोटोकाल की सुविधा देश में और देश के बाहर भी सिर्फ़ उच्च राजकीय पदाधिकारियों को ही नहीं आगे बढ़ कर क्रिकेटरों, फ़िल्मी सितारों, टी वी वालों, पत्रकारों और थोड़े दिनों मे शायद रियलिटी शो वालों को भी चहिये होगी। और अगर न मिले तो राष्ट्रीय अपमान होगा । जैसा कि फ़िल्मी खानों मे हर बात के लिये होड़ लगती है शायद कोई दूसरा खान भी अपनी पापुलरिटी सिद्ध करने के लिये, इसी तरह का एक और हंगामा खड़ा करवाये।
जिस तरह कुछ खास एक्सपर्ट लोग और मीडिया ने माहौल बनाया है और गम्भीर चर्चाओं को दर किनार कर गैर ज़रूरी बात को ज्यादा तूल दिया है यह गैर जिम्मेदाराना, बेवकूफ़ाना और बेहूदा है । राष्ट्रीय अपमान सुरक्षा जांच से नहीं, अपने को हर नियम कानून से ऊपर मानने वाली मानसिकता से होता है । ऐसी मानसिकता को बढ़ावा देने में जुटे इस मीडिया और हर बात बेबात हंगामा करने वालों से है । आज हमें आज़ादी की इस सालग़िरह पर प्रधानमन्त्री के संबोधन को पीछे कर ’शाहरुख पुराण’ को प्राथमिकता देने के मानसिक दिवालियेपन से बचने की आवश्यकता है ।
हमारे उच्च वर्ग को चाहिये कि वे सुरक्षा जैसे मामलों पर धैर्य दिखायें और अपनी थोड़ी असुविधा को तूल न दे कर उदाहरण प्रस्तुत करें, जिन्हे आम लोग भी अपनाएगें और हम सब सुरक्षित महसूस करेगें । अन्तिम बात, छोटी छोटी बातों का बतंगड बना कर पब्लीसिटी बटोरने से भी हमारे सेलीब्रटी लोगों को बचना चाहिये, चाहे वह शाहरुख खान ही क्यों न हों।

शनिवार, 15 अगस्त 2009

प्रभु

तू है विराजमान हर कण में,
इस विश्वास में जीते हैं ,
तेरा वजूद एक भ्रम है,
ऐसा भी कुछ ज्ञानी कहते हैं ,
क्या तेरा होना सिर्फ़ भ्रम है ,
संसार माया नहीं सत्य है या,
सिर्फ़ तू सत्य है यह संसार माया है भ्रम है ,
तू आयेगा जब जब धर्मं की ग्लानि होगी ,
या है उपस्थित हर क्षण,
हर कण में निरंतर,
क्या मानूं की जब नहीं आया तो,
है सब धर्मयुक्त व्यवस्थित ,
हर तरफ़ फ़ैली यह अफ़रा - तफ़री भी,
और हर कण में तेरी उपस्थिति भी,
कैसे उपेक्षित करूं यह द्वंद ,
इस द्विविधा से हमें उबारने के लिए ,
अपने नियम को फ़िर से परिभाषित करने के लिए,
तू है अनादि अनंत अखंड अछेद अभेद सुवेद ,
यह सदैव को निर्धारित करने के लिए,
एक बार फ़िर से आओ मेरे प्रभु,
सत्य और भ्रम का भेद मिटाओ मेरे प्रभु ।

बुधवार, 12 अगस्त 2009

साथ

न उदात्त प्रेम,
न अतिसय घृणा ,
न मिलन की उत्कट अभिलाषा,
न वियोग का अत्यन्त क्लेश,
फ़िर भी हम सब हैं सहयात्री ,
इस काल खंड में,
यह नियति का है आर्शीवाद ,
या है अभिशाप,
यह तो निर्धारित होगा ,
यात्रा में हमारे आचरण पर .

शनिवार, 8 अगस्त 2009

अनुराग

ये जो मेरे गालों का रंग गुलाबी हुआ,
ये जो मेरी आँखों का रंग शराबी हुआ,
ये जो मेरी चाल बदली सी है,
ये जो मेरे हाल में बेसुधी सी है,
कारण मुझसे क्या पूछते हो मेरे सांवरे ,
जब कि तुम भी जानते हो,
वो तुम ही हो,
जिसके लिए हम हुए हैं बावरे ।


बुधवार, 5 अगस्त 2009

हार या जीत

किस हार में छुपी है जीत ,
और किस जीत में छुपी है हार ,
इस हार जीत में उलझा है जीवन,
भ्रमित हुआ है अंतर्मन ।

जिस जीत से गर्वित हो कर,
चंहु ओर फिरता था कल तक ,
आज मन पछताता है यह पाकर ,
था वह एक पड़ाव न कि मंजिल।

हमें कोशिशें जारी रखनी थी,
नयी मंजिलों की राह में ,
कोशिशें नयी राहों की खोज में ,
कोशिशें नए सह यात्रियों से सहयोग में।

क्यों नही समझ पाया यह सत्य,
न हार महत्व पूर्ण है न जीत,
सिर्फ़ कोशिश महत्वपूर्ण है,
वह भी अविरल अविकल ।

हर हार के बाद जीत है ,
हर जीत के बाद हार ,
हर जीत के बाद और भी जीतें हैं ,
हर हार के बाद और भी हारें ।

कुछ भी अन्तिम नहीं है,
सिर्फ़ कोशिश के सिवा,
न हार , न जीत, न पड़ाव , न मंजिल ,
सृष्टि चक्र के ओर से छोर तक ॥

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

उद्‍गम

तुम जब तक मुझमें हो,
स्वच्छ, निर्मल, पावन, विकारहीन हो,
मुझसे विछुड़ते ही,
ये सब भी तुमसे विछुड जाएगा ,
पर यही तुम्हारी नियति है,
और मेरी परिणिति ।