शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

कौन रचयिता

भगवान ने इन्सानों को बनाया ,
या इन्सानों ने भगवान को,
अनुत्तरित यह प्रश्न सदियों से ।

रविवार, 6 दिसंबर 2009

आज ६ दिसम्बर है तो सोचो ज़रा

आज ६ दिसम्बर है । यह दिन भारत के इतिहास मे एक ऐसी जगह बना चुका है कि इसे इग्नोर नहीं किया जा सकता । अनेक तरह के राजनैतिक व अन्य संस्थाएं इस दिन को अपनी तरह से विचार व भाव प्रकट कर के मनाते हैं । लेकिन मैं इस दिन एक समझदारी की बात सामने रखना चाहता हूं ।

पिछले रविवार अमर उजाला अखबार के रविवार संस्करण में मौलाना वहीद्दुदीन खान का इंटरव्यू छपा था । मैं उसी इंटरव्यू का जिक्र करना चाहूंगा । उसे पढ़ कर मैने सोचा कि हमारे बीच में ऐसे उत्तम विचार वाले बुजुर्ग मौजूद हैं लेकिन उनकी बात न ध्यान से सुनी जा रही है और न ही संचार माध्यम उन्हे तरजीह दे रहे हैं । मैं तो सबसे, चाहे वे मुसलमान हों या हिन्दू, यही प्रार्थना करूंगा कि वे ऐसे विद्वानों को अपने समाज का नेतॄत्व दें और उनकी राह पर चलें । फ़साद खड़ा करके लाभ लेने वालों से बचें क्यों कि उसमे पड़ कर हम बिल्कुल गर्त में पहुंच जायेंगे । सारा इंटरव्यू तो यहां पुन:प्रकाशित करना उचित नहीं होगा लेकिन मैं कुछ हिस्से जरूर उद्धरित कर रहा हूं :

प्र. लिब्रहन आयोग ने पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहराव को एक तरह से बरी कर दिया है । इसे आप किस तरह देखते हैं ? जबकि उनके प्रति मुसलिमों मे काफ़ी आक्रोश रहा है।

उ. नरसिंह राव को लेकर शिकायत गलत थी । प्रधानमंत्री रहते वह जिस पूजास्थल कानून को लेकर आये थे, वह पूरी तरह न्याय संगत था । बाबरी मस्जिद को छोड कर हर पूजा स्थल १९४७ से पहले जिस स्थिति मे था , उसी तरह रखे जाने की व्यवस्था उसमे कही गयी थी । वह अच्छी व्यवस्था थी , मुस्लिमों को कहना चाहिए था कि वह बाबरी मस्जिद के मसले पर कोर्ट मे लडेगें , तब किसी तरह का विवाद नही होता । पर उन्होने इस पर अपना रिएक्सन दिखाया । इससे मामला और उलझ गया ।

प्र. पिछले दिनों वंदे मातरम पर विवाद हुआ । ऐसी समस्यायों का क्या समाधान है ?

उ. मुस्लिम समाज अगर पिछड़ा है तो अपनी अज्ञानता के कारण । जब जरूरत आधुनिक शिक्षा की थी तब हमने बच्चों की तालीम संकीर्ण बना दी । यह कहां की बात हुई कि स्कूल न जाओ क्योंकि वहां वन्दे मातरम गाया जाता है ? पहले बच्चों को अंग्रेजी पढ़ने से रोका गया अब वंदे मातरम का विवाद खड़ा करते हैं । अगर मुसलमान समझते हैं कि वंदे मातरम गैर इस्लामी है तो उन्हे इक़बाल के इस शेर की भी मुखालफ़त करनी चाहिए , " खाके वतन तेरा हर ज़र्रा देवता है" । ऐसे विवादों से हम कौम और देश को पीछे कर रहे हैं । मुस्लिम नेतृत्व को कौम की शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए सक्रिय होना चाहिए । जरूरत इस बात की है कि जब इस तरह के विवादों को हवा देने की कोशिश हो, लोग उसके विवाद में न फसें । यह इस देश की मुस्लिम कौम का दुर्भाग्य है कि विभाजन के बाद ज्यादा तर पढ़े लिखे लोग पाकिस्तान चले गये और वहां से अमेरिका जाकर उनकी सेवा करने लगे । उनकी योग्यता का लाभ कौम को नहीं मिला । न वे हमारे काम आये न पाकिस्तान के ।

प्र. बाबरी मस्ज़िद प्रकरण का जिन्न क्या यों ही देश की आबोहवा खराब करता रहेगा ? आखिर इसका समाधान क्या है ?

उ. मैने बाबरी मस्ज़िद में १९४७ से पहले नमाज़ पढ़ी है । मेरे मन में कौतूहल था कि उस जगह को देखूं जहां के बारे में कहा जाता है वहां मस्ज़िद है और उसके अन्दर मन्दिर है । तब मैने गौर किया था कि वहां मन्दिर नहीं बल्कि एक चबूतरा सा था , जिसमे खड़ाऊं, बेलन आदि के निशान बने थे । सही मायनों मे यह सीताजी का रसोई घर थी । मीर बाकी के समय के किसी सूफ़ी संत को लगा था कि अगर इस जगह के पास मस्जिद भी बना दी जाए तो दोनो समुदाय मे आपसी सौहार्द बढ़ेगा । यह गलत सोच थी । नवाब की हुकुमत और अंग्रेजों के समय मे भी कभी यह विवाद का विषय नहीं बना । लेकिन नेहरु के प्रधानमंत्री काल में जब उस जगह तीन मूर्ती या फोटो रखे गये तो यह विवाद का विषय बन गया । आप इसके समाधान की बात कहते हैं तो वह यही है कि एक मस्ज़िद पर मुसलमान चुप हो जाएं और एक के बाद दूसरी मस्ज़िद पर हिंदू चुप हो जाएं । अब इससे बाहर आइए । बहुत हो गया । दुनिया के साथ जो विकास की होड़ है उसमे अपने लिए सार्थक रास्ता निकालिए । ऐसे मसलों पर घिरे मत रहिए । गावों में टेलीफोन, बिजली, स्कूल नहीं हैं, उनके बारे में सोचिए । आतंकवाद जिस तरह सिर उठा रहा है, उससे लड़ने के लिए सबल हो जाइए ।

प्र.दुनिया मुस्लिम जगत को किस तरह से देख रही है ? खासकर तब जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा भी एक ’मुस्लिम’ हैं ?

उ. अमेरिका को इस्लाम और हिंदुत्व से लेना देना नहीं । वह ’बिजनेस आफ अमेरिका इज बिजनेस’ की थ्योरी पर चलता है । अभी देखिए, ओबामा ने हमारे प्रधानमंत्री का स्वागत करते हुए कहा, उनके लिए १५० अरब डालर के निवेश की संभावना बनती है । यह सब क्या है ? यह भूल जाइए कि उसे इस्लाम शब्द से दिक्कत है । वह बस कमाना चाहता है ।

प्र. क्या मुसलिमों ने कांग्रेस को माफ़ कर दिया है ?

उ. देखा जाए तो कांग्रेस से मुस्लिमों की नाराजगी नहीं रही है । बाबरी मस्ज़िद प्रकरण के बाद आक्रोश जरूर उभरा लेकिन धीरे धीरे थम भी गया । कांग्रेस अगर मुस्लिमों का अभी पूरा साथ नही ले पा रही है तो उसके कारण दूसरे हैं ।

प्र. मुस्लिम समाज की बेहतरी के लिए आप क्या सोचते हैं ?

उ. मुस्लिम समाज को अपनी नकारात्मकता से बाहर आना चाहिए । मुसलमान गलत लीडरशिप की वजह से पिछड़ गए । अब मुसलमान चुनाव के समय निगेटिव वोटिंग से बचें । यानी यह सोच कर वोट न दें कि मुसलमानों के हिसाब से कौन सही है और कौन गलत । वे देखें कि उनके क्षेत्र का असल विकास कौन कर सकता है । मुस्लिम समाज को जानना चाहिए कि आज की दुनिया की तरक्की माडर्न एजुकेशन से हुई है , ’संस्कृत’ या ’अरबी’ से नहीं। माडर्न शिक्षा नहीं लेगे तो पिछड जाएगें । दर असल मुसलमान अपने पिछडेपन की कीमत चुका रहा है । डेढ़ सौ साल मे हम ठहर गए । ’हाला’ का एक शेर है - बस अब वक्त का हुक्म नातिक यही है, कि दुनिया में जो कुछ है तालीम ही है ।


अंत में यही प्रार्थना करूंगा कि सभी जिम्मेदार लोग थोड़ा स्वार्थ से उपर उठ कर पूरे समाज को अगर तालीम और तरकी के रास्ते पर ले जाएं ।

बुधवार, 2 दिसंबर 2009

साथ

न उदात्त प्रेम,
न अतिसय घृणा ,
न मिलन की उत्कट अभिलाषा,
न वियोग का अत्यन्त क्लेश,
फ़िर भी हम सब हैं सहयात्री ,
इस काल खंड में,
यह नियति का है आर्शीवाद ,
या है अभिशाप,
यह तो निर्धारित होगा ,
यात्रा में हमारे आचरण पर |

मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

एक बार फिर कोडा

यह लेख मैने १० नवम्बर को प्रकाशित किया था, आज फिर कोडा की गिरफ़्तारी के संदर्भ में प्रासंगिक प्रतीत होता है इसलिए इसे पुन: प्रकाशित कर रहा हूं । यद्यपि कुछ नये तथ्य सामने आये हैं परंतु इस लेख मे कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। अन्य बातों को एक अलग लेख में कवर किया जावेगा।

कांग्रेस, कोडा ,राजा और राजनीति


यह अजीबोगरीब बात है की जब तीन राज्यों के चुनाव घोषित हुए तो झारखंड में चुनाव नहीं करवाया गया | अब तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद तुंरत यहां चुनाव की घोषणा की गयी | लेकिन उसके साथ ही एक और नाटक की शुरुआत हुई , वह है यू पी ऐ के पूर्व मुख्यमंत्री श्री मधु कोडा पर भ्रष्टाचार के आरोप और कई हज़ार करोड़ के घपले में इनकम टैक्स और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा छापेमारी | इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कार्यवाई होनी चाहिए परन्तु इस तरह चुनाव प्रक्रिया के दौरान अपने पुराने पाप को धोने का प्रयास नाटक ही है | नाटक से भी आगे बढ़कर एक प्रहसन मात्र |

कुछ बातें सोचने पर मन मज़बूर होता है ।

पहली बात यह कि मधु कोडा को मुख्य मंत्री बनाया किसने ? यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि वे यूपीए के मुख्यमंत्री थे और बहुमत के लिए कांग्रेस, राजद और झामूमो पर निर्भर थे, वरना तीन चार निर्दलीय विधायकों की सरकार का अजूबा देखने को यह देश विवश नहीं होता । जब यह सरकार चलायी जा रही थी तो क्या केन्द्रीय सरकार सोयी थी और जब पैसा बाहर जा रहा था तो मधु कोडा को हटाना नहीं था । इससे तो यही लगता है कि यह लूट मिल जुल कर हुई है और इस चुनाव में इस पैसे को खर्च किया जाना था मगर लगता है कि मधु कोडा अपने पूर्व सहयोगियों से उनकी शर्तों पर समझौते के लिए राज़ी नही हैं और इस दशा को प्राप्त हो रहे हैं । साथ ही यूपीए की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस की क्या जिम्मेवारी नहीं बनती है नैतिक व राजनैतिक दोनो, खासकर तब, जब कि यूपीए की कोई सरकार घोटाला करें । आखिर जो वोट जनता ने इन्हे दिया था उसकी ताकत को मधु कोडा के हाथों मे किसने सौंपा । क्या इस पाप से कांग्रेस बच जायेगी और एक मोहरा शहीद करके झारखंड की जनता को झांसे मे ले लेगी और सत्ता पर कब्जा कर लेगी ।

दूसरी बात क्या झारखंड के पूर्व राज्यपाल श्री सिब्ते रज़ी इस तरह की कार्यवाई मे केन्द्र सरकार का सहयोग नहीं कर पा रहे थे इसलिए उनके बदलाव के बाद ही ये छापे मारी और नोटिस का सिलसिला चालू किया गया । इसलिए झारखंड का चुनाव भारी मांग के बावजूद बिना किसी कारण के टाला गया वैसे भी राजभवन के अपने शुरुआती दिनो मे रज़ी साहब ने बहुत सा सहयोग कर चुके थे, अब शायद उतना माद्दा नही दिखा पा रहे होगें । सब को श्री बूटा सिंह बिहार के राज्यपाल और रज़ी साहब की झारखंड मे कार्यगुजारियां याद ही होंगी ।

तीसरी बात, हंगामा तो चल रहा था चालीस हज़ार करोड के स्पेक्ट्रम घोटाले का जो कहा जा रहा था भारत के इतिहास का सबसे बडा महाघोटाला । राजा साहब बंधते नज़र आ रहे थे, लोग उनके इस्तीफ़े और बर्खास्तगी की चर्चा शुरू ही कर रहे थे कि अचानक सब पर विराम लग गया । मीडिया द्वारा ’राजनैतिक चालबाज़ियों से परे’ का तमगा पाये प्रधानमंत्री जी ने सर्टिफिकेट दिया मिस्टर राजा ने कुछ भी गलत नही किया है और बात खत्म हो गयी । या तब तक खत्म जब तक डीएमके सहयोग करती रहेगी वरना कोडा वाला अंजाम हो सकता है, या एक और पहलू भी हो सकता है कि कांग्रेस के चुनावी फंड मे उनके हिस्से का सहयोग इधर से भी मिल गया होगा। कारण जो भी हो हालात अति संसयपूर्ण हैं ।

आज मीडिया सरकार व सरकारी पार्टी से कठिन प्रश्न पूछने से गुरेज़ करता है । वरना ऐसा पहले नही होता था कि मीडिया का एजेंडा भी सरकार इतनी आसानी से सेट कर रही है और मीडिया पूरे ज़ोर शोर से सरकारी लाइन पर चल रहा । मैं एक ही गुज़ारिश करूंगा कि जिस तरह नोट के बदले वोट के समय आंख कान बंद करके तमाशा होने दिया गया वैसा लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को इस बार नहीं होने देना चाहिये ।

जागो अब तो जागो, वरना ये हज़ारों करोड की लूट करेंगे और हम सौ रूपये किलो दाल खरीदेंगे, आखिर पैसा तो आम आदमी की ही जेब से जायेगा ।