रविवार, 25 अप्रैल 2010

सरकार की चाल - हर दिन नये कमाल

आजकल हिंदी ब्लॉग जगत मे एक ही मुद्दा सबको उद्वेलित करता है वह है धर्म की बुराई , इसके लिए बहुत से लोग दूसरे के धर्म मे क्या क्या बुराइयां है उसके विशेषज्ञ बन जायेंगे । लेकिन जो मुख्य बात है , एक जिम्मेदार समाज, जिम्मेदार सरकार और जिम्मेदार मीडिया बनाया जाय उस पर बहस हो क्योंकि वही मिल कर इस देश को सही दिशा देगें जो इसे २०२० तक महाशक्ति बनाएगा , उस पर से नज़र नही रखी जा रही है ।

मरे विचार मे आईपीएल का भ्रष्टाचार इस सरकार का सबसे बड़ा आर्थिक भ्रष्टाचार बन कर उभर रहा है जिसमें कई केंद्रीय मंत्री और सांसद सीधे रूप से जुड़े दिखाए पड़ रहे हैं । इसके साथ दूसरा पहलू यह है कि आम जनता मे इसकी लोकप्रियता कम होती नहीं नज़र आ रही है । तो क्या सोचा जाय , यह कैसी भावना है , यह कैसा दृष्टिकोण है । इसी पर चर्चा मे मेरे एक मित्र ने कहा कि देश की जनता को छोड़ दीजिए , ’ कुछ दिनों पहले तक हर बम विस्फोट के बाद इसी व्यवहार को स्पीरिट ओफ़ मुम्बई / इन्डिया ’ के नाम से ग्लोरीफाई किया जा रहा था । बाद मे समझ मे आया कि या तो यह मज़बूरी है या बेपरवाही ( जैसे सड़क पर एक्सीडेंट देखकर भी आगे बढ़ जाते हैं और अगर अपने किसी के साथ ऐसा हो जाय तब लगता है कि लोगों मे इंसानियत मर गयी है ) । यानी जब तक अपने किसी को चोट न लगी हो बेपरवाह रहो । इसलिए आज जब मैच देखने वालों मे कोई कमी नहीं हो रही चाहे टीवी पर हो या स्टेडियम में तो यह कोई अजीब बात नही है इस तरह के व्यवहार को स्वाभाविक ही मानकर चला जाना चाहिए । वैसे भी हमारे देश मे घूस लेने वाले का कभी सामाजिक बहिष्कार नही हुआ ।

सरकार जिस तरह आईपीएल की जांच कर रही है , खबरें लीक कर रही है ऐसा लगता है कि कुछ और ही स्कोर सेटेल किया जा रहा है । २००९ चुनावों मे जीत के बाद कांग्रेस ने यह कोशिश किया कि नये , युवा , प्रोफेसनल और इमानदार छबि वाले चेहरे सामने लाये गये जो आगे चल कर राहुल गांधी की भविष्य की टीम के कर्णधार बनेगें , उनमे से थरूर बहुत ही अहम थे । लेकिन जिस तरह आर्थिक भ्रष्टाचार के शक मे उनको हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा , खासकर ऐसा लगता है कि ललित मोदी ने यह सब एन सी पी ( शरद पवार ) के संरक्षण से किया , इसलिए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व आहत है और अब चौतरफा तीर चलाए जा रहे हैं ।

एक और बात , राजनीति के चलने मे काले धन की भी बहुत भूमिका होती है । अपने विरोधी ( या सहयोगी भी ) को नियन्त्रित करने के लिए उसके इस सोर्स को सुखाने की भी कोशिश हो सकती है । जहां तक जांच से दूध का दूध और पानी का पानी हो ने बात कही जा रही है तो एक ही जवाब - " हा हा हा " । हम सब यह तमाशा अनेकों बार देख चुके हैं । बोफोर्स जांच , यूटीआई घोटाले की जांच , वोट फॉर नोट पर जांच , तेलगी पर जांच जैसे बहुत से उदाहरण हैं । अगर राजनीतिज्ञ शामिल होंगे तो कुछ नही मिलेगा । हां अगर केवल उद्योगपति शामिल हो तो कुछ आशा है जैसे सत्यम केस मे कुछ सत्य बाहर आया मगर वह भी पूरा नहीं था ।

ललित मोदी के आईपीएल से हटते ही , शशि थरूर के बदले एक-एक का स्कोर बराबर हो जायेगा , पवार और कांग्रेस मिल कर महाराष्ट्र और दिल्ली मे सरकार चलाएंगे , जांच तो चलती रहेगी । दूसरा नया मुद्दा मिल जायेगा या यूं कहे मिल ही गया है " टेलीफोन टेपिंग का " , सारे बिजी रहेगें , हम आप और संसद भी ।

आखिर मे संसद के सत्र के आस पास ही क्यों इस तरह की बातें निकलती हैं , यह जानबूझ कर मुख्य और जनता से जुड़े मुद्दों से बहस को भटका कर , संसद को हंगामे की भेंट चढ़ाने की चाल तो नहीं । अब कहां है महंगाई पर बहस , कहां है न्युक्लियर लायबिलिटी पर बहस और कहां है महिला आरक्षण पर बहस । सब बातें नेपथ्य मे चली गयीं । भाजपा की रैली और अन्य विपक्ष की रैली के बाद महगांई हर समाचार माध्यम पर बहस का मुख्य मुद्दा होना चाहिए था लेकिन देखिए जिस दिन भाजपा की रैली थी सारे चैनेल आईपीएल , ललित मोदी , शशि थरूर और सुनन्दा पुश्कर पर बहस कर रहे थे , हां थोड़ी बहुत चर्चा अगर थी तो लगने वाले जाम की या नितिन गड़करी के हीट स्ट्रोक से गिर जाने की । अब जिस दिन वाम पंथी व अन्य दल रैली करेंगे उसदिन टेलीफोन टेपिंग पर अख़बारों मे , संसद मे और टीवी पर बहस हो रही होगी , इसका पूरा इन्तजाम कर लिया गया है ।

टेलीफोन टेपिंग के रहस्य का खुलासा किसने किया - आउट लुक और विनोद मेहता ने । आज तक तो मुझे आउट लुक स्वतंत्र पत्रिका कम कांग्रेस संदेश ज्यादा और विनोद मेहता जी स्वतंत्र संपादक कम और कांग्रेस के प्रवक्ता ज्यादा नज़र आते थे । आज यह चमत्कार कैसे , क्या सचमुच ये सरकार की पोल खोल रहे हैं या उसके साथ मिल कर बड़ी बात को दबाने के लिए छोटा हंगामा खड़ा कर रहे हैं ।

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

शाहरुख खान भी आईपीएल की जांच के घेरे में ??

एक छोटी सी ट्वीट आज देश की सबसे बड़ी समस्या बन गयी या जान बूझ कर बनायी जा रही है । जो बात सबसे अचंभित कर रही है कि न मंहगाई , न नक्सल समस्या , न बिजली की कमी और न शिक्षा , स्वास्थ्य जैसी समस्यायें , कोई भी बात आज महत्वपूर्ण नही रह गयी है । आज केवल आईपीएल चर्चा मे है वह भी अनुचित कारणों से । क्या और मंत्रियों की बलि लेगा यह विवाद , जैसा कि नजर आ रहा है थरूर साहब तो गये ही अब प्रफुल्ल पटेल , उनकी बेटी और शरद पवार की बेटी व सांसद सुप्रिया सुले पर आरोप लग रहे हैं । इसके साथ सुपर स्टार शाहरुख खान को भी नोटिस दिया गया है । यह गंभीर मामला है क्योंकि शाहरुख खान कांग्रेस के करीबी माने जाते हैं । आखिर अभी कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी उनकी फिल्म को प्रदर्शित होने देने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दे चुके हैं । ऐसे मे यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या कोई बचा है या यह तमाशा सचमुच काला अध्याय बनेगा और कई नामचीन लोगों को अपने घेरे मे लेगा ।

तरह तरह की जांच की बात की जा रही है जिनमे से एक मांग संयुक्त संसदीय समिति ( जेपीसी ) की भी हो रही है । यह मांग एक नयी चाल भी हो सकती है क्योंकि जेपीसी के सदस्यों मे दलों को प्रतिनिधित्व उनके संसद मे उनके संख्या बल के आधार पर जगह दी जाती है । ऐसे मे शासन करने वाले मोर्चे का बहुमत वहां रहेगा और परिणाम भी काफी हद तक उनके मुताबिक ही आना निश्चित है । पिछली कुछ जेपीसी की जांच का तो यही हश्र हुआ है । चाहे बोफोर्स के समय हो या अभी २००८ मे नोट फॉर वोट वाले मामले पर हो । वैसे यह भी सवाल उठता है कि जब राजनैतिक लोग शक के घेरे मे हैं तो वे क्यों स्वयं इसकी जांच कर रहे हैं आखिर उच्चतम न्यायालय के तीन जजों की समिति क्यों न बनाई जाय और उसे उच्चतम न्यायालय के सारे अधिकार प्राप्त हों जिससे वह जिसे चाहे बुला सके और जो रिकार्ड चाहे मंगा सके , चाहे देश से या विदेश से ।

मामला इतना गंभीर है कि प्रधानमंत्री वित्त मंत्री और गृह मंत्री के अलावा कई बार राजीव शुक्ला से चर्चा कर चुके हैं और आज सोनिया गांधी से भी मंत्रणा कर चुके हैं । इस हालत पर मुझे याद आता है , डॉ धर्मवीर भारती के प्रसिद्ध नाटक ’ अन्धा युग ’ जिसके स्थापना भाग मे विष्णु पुराण को उद्दॄत करते हुए लिखा है :

’ततश्चानुदिनमल्पाल्प ह्रास
व्यवच्छेददाद्धर्मार्थह्योर्जगतस्संक्षयो भविष्यति ।’

उस भविष्य में
धर्म-अर्थ ह्रासोन्मुख होगें
क्षय होगा धीरे -धीरे सारी धरती का ।

’ततश्चार्थ एवाभिजन हेतु ।’

सत्ता होगी उनकी
जिनकी पूंजी होगी ।

’कपटवेष धारणमेव महत्व हेतु ।’

जिनके नकली चेहरे होंगे
केवल उन्हे महत्व मिलेगा ।

’एवम चाति लुब्धक राजा
सहाश्शैलानामन्तरद्रोणी: प्रजा संश्रियष्यन्ति ।’

राजशक्तियां लोलुप होगीं ;
जनता उनसे पीडित होकर
गहन गुफाओं मे छिपकर दिन काटेगी ।

( गहन गुफाएं ! वे सचमुच की या अपने कुंठित अंतर की )


मतलब यह कि महंगाई चरम पर है , देश की बड़ा हिस्सा नक्सलवादी माओ वादी हिंसा से ग्रस्त है और देश का शासक वर्ग , अन्य उच्च वर्ग ( एलीट क्लास ) के साथ मिलकर काले पैसे से सबसे लोकप्रिय खेल का तमाशा खड़ा करके जनता को लूटने मे लगा है । इस सब को टैक्स मे छूट भी दिया जा रहा है । आखिर जनता क्या करे कहां जाय ।

जब से यह पढ़ा कि शाहरुख खान ने भी मॉरिसस मे रजिस्टर्ड कम्पनियो द्वारा पैसा लगाया है , थोड़ा धक्का लगा क्योंकि शाहरुख सबसे अधिक और उचित टैक्स देने वालों मे शुमार होते हैं । ईश्वर करे कुछ आदर्श तो बचे रहें , उनके विरुद्ध कुछ न मिले ।

रविवार, 18 अप्रैल 2010

आईपीएल , शशि थरूर और फ़िराक गोरखपुरी की कथा

आज सबसे ज्यादा चर्चा खबरिया चैनेलों पर आईपीएल की हो रही है , दांतेवाड़ा पर कम और सुनन्दा पुश्कर पर ज्यादा समय लगा रहा है मीडिया । इस बीच थरूर साहेब सफाई दे रहे हैं कभी चैनेलों पर , कभी संसद को , कभी वित्त मंत्री को , कभी कांग्रेस अध्यक्ष को और अब प्रधान मंत्री को । बेचारे समझ नही पा रहे है कि उन्होने क्या गलती कर दी । इतने सुलझे हुए अधिकारी थे , यूएनओ मे पूरा कैरियर बिता कर आये , सारे विश्व के मीडिया की समझ रखते हैं , भाग्य साथ होता तो यूएन के सेक्रेटरी जनरल होते और पूरी दुनिया के मीडिया को संभाल रहे होते । लेकिन बेचारे जबसे मंत्री बने हैं एक कंट्रोवर्सी से दूसरी कंट्रोवर्सी मे फंसते और बचते समय बिता रहे हैं ।

थरूर साहेब बार बार कह रहे हैं कि सुनन्दा मेरी मित्र तो हैं मगर कोई रिश्ता नही है मतलब पत्नी नहीं हैं । वे बार बार समझा रहे हैं कि वे विदेश राज्य मंत्री हैं और आईपीएल उनके मंत्रालय का मामला नहीं है, लेकिन मीडिया के मित्रगण यह सब मानने और समझने को तैयार नही हैं । उनकी समझ मे यह भी नही आ रहा कि सुनन्दा को लाभ मिलने मे क्या गलत बात है ? आखिर पत्नी को लाभ दिलवाते तो गलत हो सकता था लेकिन महिला मित्र को लाभ कानूनी नज़र से घूस तो नहीं कहा जा सकता । अब नैतिकता का मुद्दा मत उठाइये वह तो केवल विरोधियों के लिए होता है ।

इस बात पर मुझे , बचपन मे हिंदी की मशहूर पत्रिका धर्मयुग मे फ़िराक गोरखपुरी साहेब के बारे मे छपा एक किस्सा जो उनके भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के अवसर का है वह स्मरण हो आया । उन्होने उस समय मंच से एक किस्सा सुनाया था जो कुछ इस तरह है :

एक बार एक नगर मे कुछ लोगों ने यह विचार किया कि अपने शहर की विधवा महिलाओं के कल्याण के लिए कुछ करना चाहिए । लोगों ने तुरन्त एक विधवा कल्याण नाम से संस्था बना दी और नगर के एक बड़े समाजसेवक को इसका प्रधान नियुक्त कर दिया । उत्साही लोगों ने मिलकर घर घर जा कर इस संस्था के लिए चंदा भी इकट्टा किया । काफी धन इकट्ठा हो जाने के बाद लोगों ने सब कुछ प्रधान जी को सुपुर्द कर दिया । बहुत समय बीत गया तो लोगों को ध्यान आया कि प्रधान जी से जा कर मिला जाय और पता किया जाय कि विधवा कल्याण पर उन्होने क्या कदम उठाये हैं और भविष्य के लिए उनकी क्या योजना है । कई लोग प्रधान जी से मिलने उनके घर गये और शिकायत किया कि धन का क्या हुआ और वे उसे कैसे खर्च कर रहे हैं ?

प्रधान जी ने जवाब दिया - मित्रों , धन पूरी तरह सुरक्षित है और बैंक मे वैसा ही पड़ा है आप लोग बिल्कुल चिन्तित न होवें इसका सदुपयोग भी विधवा कल्याण के लिए ही होगा ’आखिर जब मैं मरूंगा तो मेरी पत्नी विधवा होगी कि नही’ ।

तो साहब थरूर हों , ललित मोदी हों या कोई और हो , खेल मे क्या रुचि ले रहा है और खेल का कितना कल्याण कर रहा है उसका तो पता नहीं लेकिन यह बिल्कुल स्पष्ट है कि अपने रिश्तेदारों और बेनामी तरीके से अपना कल्याण कर रहा है इसमे कोई दो राय नहीं है ।

सबसे बड़ी बात - इस तमाशे को टैक्स मे छूट दिया जा रहा है । यानी लूट चौतरफा ।

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

रक्तबीज

हर तरफ़ उगे हैं,
आइने ही आइने,
जिनमे दिखायी पड़ते हैं,
अनगिनत प्रतिबिंब।

चाहता हूं इनमे दिखें,
केवल मोहक मनभावन,
पर दिखायी देते हैं,
कुंठित और बीभत्स।

बीभत्सता जो है सृजित,
हमारे कलुषित विचारों से,
जो है पोषित पुष्पित पल्लवित,
द्वेष लालच व साज़िश से।

जब बंद करता हूं आखें,
तो सारे बिंब समाते मस्तिष्क में,
रोक लूं आखों को देखने से,
कैसे रोकूं सोचने से मस्तिष्क को।

क्या करूं कैसे बचूं,
मारकर पत्थर जो तोड़ा इनको,
हर टूट से बनेंगे सैकडों आइने,
और उनमे उतने ही प्रतिबिंब।

रुक गया हाथ रख दिया पत्थर,
समझ गया कि समाधान पत्थर नहीं,
इसके प्रहार से जन्म लेता है रक्तबीज,
जो केवल बढ़ाता है बीभत्सता।

रविवार, 4 अप्रैल 2010

सानिया मिर्ज़ा की शादी

सानिया की शादी पर इतना बवाल क्यों हो रहा है , इससे बढ़कर यह सवाल है कि यह बवाल उचित है या नहीं ? भारतीय उपमहाद्वीप मे शादी ब्याह तो खुशी का ऐसा मौका होता है जिसमे दो व्यक्ति तो जीवन भर के लिए एक दूसरे से जुड़ते ही हैं दो परिवार भी साथ साथ जुड़ते हैं । इसके अतिरिक्त यह व्यक्तिगत से बढ़कर सामाजिक रिश्ता भी होता है । विवाह दो परिवारों व दो समाजों के बीच एक जुड़ाव की कड़ी के रूप मे होता है । समाज का निर्माण मनुष्य के व्यापारिक रिश्तों और वैवाहिक रिश्तों से ही होता है । इसीलिए इसकी कामयाबी के लिए सबका साथ , आशीर्वाद और शुभकामनाएं ली जाती हैं ।

सानिया और शोएब की शादी का मामला सीधा नहीं है इसमे एक नही कई मोड़ हैं । मै किसी के व्यक्तिगत मामलों पर कभी नहीं लिखता लेकिन इस मामले मे हो रहा हंगामा इसे व्यक्तिगत के दायरे से बाहर ला रहा है । सानिया इस देश की बेटियों के लिए आदर्श हैं , मैने खुद अपनी एक कविता मे उनका ज़िक्र किया है । कुछ साल पहले जब किसी मौलवी ने उनकी ड्रेस को लेकर फ़तवा दिया था तो इसका जबरदस्त विरोध हुआ था । इसके अलावा भी सेलिब्रटी होने के कारण उनके बारे मे छोटी बड़ी बाते समाचार बनती ही रहती हैं । इस लिहाज से उनकी शादी पर चर्चा तो स्वाभाविक है और जब शादी एक पाकिस्तानी क्रिकेट स्टार से हो तो चर्चा और भी लाज़िमी है । लेकिन यह चर्चा खुशनुमा और पॉजिटिव के बज़ाय नेगेटिव हो रही है । इस खुशी की बात को नेगेटिव मोड़ पर लाने क्या क्या पहलू हैं , एक नज़र उनपर डालते हैं ।

सोहराब मिर्ज़ा पहलू :

सानिया की सगाई जुलाई ०९ मे सोहराब मिर्ज़ा से तय हुई , पूरे ज़श्न के माहौल मे , दोनो की तस्वीरें मीडिया मे आयीं , लेकिन सगाई छ: महीने मे टूट गयी , कारण का खुलासा नही हुआ । दोनो परिवारों ने केवल यह कहा कि सोहराब और सानिया दोनो ने अपनी इच्छा से अलग होने का फ़ैसला किया है । अब सानिया ने इस बात का खुलासा किया है कि अब से करीब छ: महीने पहले ( यानी सोहराब से सगाई के तीन महीने बाद ) से उनके और शोएब के बीच डेटिंग चल रही है । हमे सानिया की बात का विश्वास करना चाहिए , फिर भी भारतीय समाज के हिसाब से यह अजीब ही है कि सगाई के बाद सानिया किसी दूसरे के साथ डेटिंग कर रही थीं ।

या सच यह हो सकता है , जैसी कि अफ़वाह है , कि सानिया सोहराब से शादी करना ही नही चाहती थी , उन्हे शुरू से ही शोएब से शादी करनी थी लेकिन उनका परिवार उनके पाकिस्तान मे बसने और शादी के बाद टेनिस छोड़ देने की शोएब की शर्त मानने लिए तैयार नही था । इसके पीछे भारत पाकिस्तान के बीच के हालात भी एक कारण हो सकता है । इस लिए सोहराब जो कि एक पारिवारिक मित्र हैं उनसे सानिया की सगाई कर दी गयी । इस बात का इशारा कुछ महीने पहले के सानिया के एक इन्टरव्यू से मिलता है , जब उन्होने यह कहा था कि जब खेलना है तो शादी क्यों करें । लगता है कि सोहराब से सगाई के बाद शोएब तथा उनके परिवार पुनर्विचार करने पर मजबूर हुआ और इन दोनो बातों पर छूट देने के लिए राज़ी हो गया । इसी लिए यह बात जोर देकर कही गयी कि दोनो शादी के बाद दुबई मे रहेंगे और सानिया भारत के लिए खेलती रहेंगी । इससे भारत मे मौजूद पाकिस्तान विरोधी माहौल को सानिया विरोधी बनने से रोकने मे थोड़ी सहायता भी मिली है ।

लेकिन दोनो सूरतों मे सोहराब मिर्ज़ा के नज़रिये से देखें तो बेचारे इस्तेमाल ही हुए ।


राजनैतिक और सांप्रदायिक पहलू :

भारत मे कुछ राजनैतिक दल ( जैसे कि शिव सेना ), समाजवादी पार्टी के अबु आज़मी और कुछ अराजनैतिक हंगामा ग्रुप ( जैसे प्रमोद मुथालिक की श्री राम सेना ) जैसे लोग हैं जिनका एक ही काम है कि किसी भी मुद्दे को लेकर उसे या तो साम्प्रदायिक रंग दे देते हैं या उसे भारतीय संस्कृति पर हमला घोषित कर देते हैं । कोई किसी से शादी कर रहा है इसमे क्यों हाय तोबा । लेकिन अजीब बात है कि बाल ठाकरे जैसा व्यक्ति संपादकीय लिख रहा है , उनके कार्यकर्ता पोस्टर जला रहे हैं और सानिया को भारत से नही खेलने देने की घोषणा कर रहे हैं । बहुत दिनो से सोये पड़े प्रमोद मुथालिक को भी टीवी पर आने का मौका मिल गया ।

यह सब ज्यादा से ज्यादा मीडिया पोजिशनिंग से अधिक कुछ नही है । भारत मे आज के माहौल मे ऐसी बातों पर लोग थोड़ा बहुत कन्सर्न भले जता दें लिकिन उद्द्वेलित नही होते । इसलिए मुझे नहीं लगता कि इस बात पर मामला गर्म रहेगा । वैसे भी शादी के बाद लडकी अपने ससुराल जाती ही है , यहां तो लड़की को पराया धन ( यानी पति के परिवार की ) मानते ही हैं । बस थोड़ी बहुत कसक यदि है तो वह पाकिस्तान को लेकर है , दूल्हा अगर पाकिस्तानी नही होता तो इनमे से किसी को अपनी राजनीति चमकाने का मौका नही मिलता । लेकिन अब इस बात को ज्यादा मुद्दा बनाने का कोई लाभ नहीं ।


आयशा सिद्दीक़ी पहलू :


आयशा हर टीवी चैनल पर छायी हुई हैं । उन्हे पूरी सहानुभूति भी मिल रही है । उन्होने इतना सबूत तो लोगों के सामने रख ही दिया है कि शोएब का चरित्र शक के दायरे मे आ गया है । अब यह तो साफ है कि निकाह हुआ था , अब शोएब की तरफ से यह मुद्दा उठाया जा रहा है कि निकाह नामा तो है लेकिन प्रोसेस पूरा नही हुआ । इससे साफ जाहिर होता है कि दाल मे कुछ काला तो है । आज जब शोएब और सानिया एक पवित्र रिश्ते मे बंधने जा रहे हैं तो यह शक और धोखे का माहौल ठीक नहीं है । यदि सचमुच आयशा के साथ निकाह हुआ था तो यह शादी सानिया ,आयशा और कानून सब के साथ अन्याय होगा । इसलिए स्थिति साफ हो तो अच्छा होगा नही तो बाद मे इसका परिणाम ज्यादा दुखद हो सकता है ।

अंत मे शोएब पहलू :


शोएब मलिक की एक ही छबि हमारे मन मे बसी हुई है जब ट्वन्टी-ट्वन्टी विश्व कप के फाइनल मे भारत से हारने के बाद उन्होने पूरे दक्षिण एशिया के मुसलमानों से माफ़ी मागी थी कि उनके लिए वे विश्व कप नही जीत पाये , यानी उस भारत से हार गये जो हिंदू बहुल है । यह उस पाकिस्तानी मानसिकता को ज़ाहिर कर रहा था जो मानता है कि विभाजन के बाद पाकिस्तान ही मुसलमानो का प्रतिनिधित्व कर सकता है ।

ऐसे व्यक्ति से क्या हम यह उम्मीद करें कि वे अपनी पत्नी को यह छूट देगें कि वे भारत की नागरिक बनी रहें , भारत के लिए खेले और मेडल जीते । लेकिन जब ऐसी घोषणा सानिया और शोएब दोनो ने किया है तो शायद हो सकता है कि शोएब बदल गये हैं या सानिया ने बदलने पर मजबूर कर दिया है या फिर बाद मे सानिया बदल जायेंगी । यह तो समय ही तय करेगा ।


आज तो केवल इतना ही : सानिया-शोएब को सुखी और सफल वैवाहिक जीवन के लिए शुभकामनाएं । शायद इससे भारत और पाकिस्तान के बीच कुछ मिठास आये ताकि सम्बन्ध अच्छे बने और आज जो नेगेटिव चर्चा है उसका परिणाम पॉजिटिव हो । आमीन

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

त्रयी

मन तो है बावरा,
शांति की खोज मे ,
हो रहा है उतावला ।