tag:blogger.com,1999:blog-4728869318576449032.post6860367174855003572..comments2023-07-20T14:22:27.330+05:30Comments on मरीचिका: गालियां ही गालियां , बस एक बार सुन तो लें ( तर्ज - रिश्ते ही रिश्ते )विजय प्रकाश सिंहhttp://www.blogger.com/profile/17982982306078463731noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-4728869318576449032.post-23918522375033793022010-08-03T23:32:44.319+05:302010-08-03T23:32:44.319+05:30सुनीता जी, बहुत दिनो बाद मरीचिका पर पधारने के लिए ...सुनीता जी, बहुत दिनो बाद मरीचिका पर पधारने के लिए धन्यवाद । वैसे मै भी इन दिनो ज्यादा कुछ लिख नहीं सका । हां , एक बात जरूर कहूंगा , अराजकता होने का सवाल ही नहीं , मेरा मानना है कि सचमुच गालिओं से भड़ास निकल जाती है , बस संभल कर उपयोग करने की आवश्यकता है , कहीं लेने के देने न पड़ जाय ।विजय प्रकाश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17982982306078463731noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4728869318576449032.post-62636253950805909902010-08-03T15:27:52.254+05:302010-08-03T15:27:52.254+05:30अच्छे विचार है इस तरह के विचार यदि सभी के हो तो चा...अच्छे विचार है इस तरह के विचार यदि सभी के हो तो चारो तरफ अराजकता ही फैल जायेगी।Sunita Sharma Khatrihttps://www.blogger.com/profile/10860643098392133673noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4728869318576449032.post-65732051652776034682010-05-08T21:38:50.590+05:302010-05-08T21:38:50.590+05:30समीर जी, सचमुच जब आप अपने मन की भड़ास गालियों द्वा...समीर जी, सचमुच जब आप अपने मन की भड़ास गालियों द्वारा निकाल देते हैं तो आप तनाव मुक्त महसूस करते हैं , इसे आप मेरा निजी अनुभव समझिये ।<br /><br />द्विवेदी जी आप से पूर्णत: सहमत हूं । आप टिप्पड़ी पाकर अभिभूत हूं, बहुत बहुत धन्यवाद ।<br /><br />अमित जी , गालियों को सत्कर्म की संज्ञा बिलकुल नहीं दी जा सकती , लेकिन ये अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम आदि काल से हैं क्योंकि ये एक विशेष मनोदशा को प्रकट करती हैं ।विजय प्रकाश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17982982306078463731noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4728869318576449032.post-62374647176082401122010-05-08T11:33:06.165+05:302010-05-08T11:33:06.165+05:30' यजुर्वेद में लिखा है-''कुर्वन्नेवेहं...' यजुर्वेद में लिखा है-''कुर्वन्नेवेहं कर्माणि जिजीविषेच्छत समा।'' अर्थात् सत्कर्म करता हुआ मनुष्य सौ वर्ष जीने की इच्छा करे। वेदों में दीर्घायु की कामना की गई है, किंतु सत्कर्म करते हुए। और गाली देना सत्कर्म तो नहीं हो सकता ,किसी भी तरीके से नहीं हो सकता. सन्मार्ग पे चलना कभी भी किसीके प्रति दुर्भावना रखना नहीं हो सकता है ,Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4728869318576449032.post-29394905584657691672010-05-08T10:40:09.072+05:302010-05-08T10:40:09.072+05:30गालियाँ मनुष्य के सामाजिक अस्तित्व की अभिव्यक्ति ह...गालियाँ मनुष्य के सामाजिक अस्तित्व की अभिव्यक्ति हैं। समाज कुछ नियम कुछ रिश्ते तय चुका है। उन्हें तोड़ने वालों को विभूषित करने वालों के लिए गालियाँ हैं।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4728869318576449032.post-12372430693897175132010-05-08T07:22:54.274+05:302010-05-08T07:22:54.274+05:30गालियों मे मंत्रों जैसी शक्ति है , आत्मानंदित करने...गालियों मे मंत्रों जैसी शक्ति है , आत्मानंदित करने की और विनाश करने की भी। सब कुछ बस इनके उपयोग के तरीके पर निर्भर है -:) आजमा कर देखते हैं. :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com