मंगलवार, 1 सितंबर 2009

चमचा पुराण

गांधी की जय से क्या होगा,
नेहरु की जय से क्या होगा,
भारत में जो भी कुछ होगा,
चमचागीरी से ही होगा ।

बोलो जप तप तीरथ करने से,
यहां किसे क्या मिल जाता है,
पर चमचागीरी करने भर से ही,
किस्मत का हर फाटक खुल जाता है ।

चमचागीरी है एक कला,
किंतु नहीं सिखलायी जाती है,
विद्यालयों के कमरों में भी,
यह नहीं पढाई जाती है ।

नभचर को बोलो कब कोई,
नभ में उडना सिखलाता है,
जलचर को भी बोलो कब कोई,
जल में तैरना सिखलाता है ।

ज्यों कश्मीर में केसर मिलता,
और केरल में काजू मिलता है ,
चमचागीरी का फूल हमेशा,
कुर्सी की क्यारी में खिलता है ।

चमचों की महिमा कौरव कुल से,
अब तक है चलती आयी ,
कवियों ने भी ऊचें स्वर में,
चमचों की महिमा है गायी ।

ज्यों रिश्वत के बिना ,
काम न कोई बन पाता है ,
वैसे ही कुर्सी और चमचे का ,
जनम जनम का नाता है ।

फिर भी यह एक पहेली है,
जो नही सुलझने पायी है ,
कुर्सी के बाद चमचा आया है,
या चमचे के बाद कुर्सी आयी है ।

है मिलावट आज सब जगह,
इसीलिये तुमको समझाता हूं,
असली और नकली चमचों की,
पहचान तुम्हे करवाता हूं ।

नकली चमचा कुछ देर बाद में,
मौसम सा रंग बदलता है,
असली चमचा वो है जो,
गिरगिट से पहले रंग बदलता है ।

तुम भी चमचे बन सकते हो,
बस स्वाभिमान का दमन करो,
अपने सब काम बनाने को,
सारे आदर्शों का हवन करो ।

चमचा तुम सा ही होता है,
बस केवल नाक नहीं होती,
वह सब धर्मों से ऊंचा है,
चमचों की जात नहीं होती ।

तुम झूठे मन से बोल रहे ,
गांधी की जय नेहरु की जय,
मैं सच्चे मन से बोल रहा,
चमचों की जय चमचों की जय ।

मुट्ठी भर लोगों से बोलो कब तक,
यह गांधी युग है चलने वाला ,
अरे गांधी युग जल्द जायेगा,
अब चमचा युग है आने वाला ॥

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यह पैरोडी आज से दस साल पहले किसी मित्र ने लिख कर दिया था । उन्हे भी किसी और ने लिख कर दिया था । इसके रचयिता का नाम मुझे नही पता । यदि किसी को पता हो तो अवश्य बतावें । धन्यवाद ।