मनुष्य जीवन भर मंजिल की तलाश में भागता है और मंजिल उससे दूर होती जाती है, जैसे जल की तलाश में मृग मरू भूमि में मरीचिका का अनुभव करता है,
संत कबीर के शब्दों में : पानी में है मीन पियासी
मंगलवार, 4 अगस्त 2009
उद्गम
तुम जब तक मुझमें हो, स्वच्छ, निर्मल, पावन, विकारहीन हो, मुझसे विछुड़ते ही, ये सब भी तुमसे विछुड जाएगा , पर यही तुम्हारी नियति है, और मेरी परिणिति ।
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