तुझे यदि मन्ज़िलों का ज़रा भी ग़ुमान होता,
इन रास्तों से चलते हुए न यूं हैरान होता,
बिना हैरानियों के सफ़र न यूं जीवन्त होता,
शोरगुल के बीच भी मन तेरा वीरान होता ।
सामने नज़रों के तेरी गुजरते जो दॄश्य हैं,
बदलते यूं कि जैसे अभिसारिका के परिधान हैं,
ये कभी भी बोध स्थिरता का न होने देते हैं,
लग रहे ये चलते से, पर असल में तो तू गतिमान है।
यहां से पहले भी गुजरे हैं अनगिनत राही,
बाद में भी गुजरने वालों की कमी न होगी,
कुछ थे भूले कुछ थे भटके कुछ ने यह राह खोजी,
मत भटकना इस नैनाभिराम दॄश्य से तू मनोयोगी ।
तुझको मिलेगें कितने खण्डहर कितने जंगल कितने वीराने,
कितने साथी कितने प्रतिभागी कितने सीधे कितने सयाने,
वो जो हैं आज तेरे अपने जब मिले तब तो थे अनजाने,
इस पल में हैं साथ तेरे कल न थे कल होगें कोई न जाने ।
न रुकना कटंकाकीर्ण इस पथ मे देख तू पैरों के छाले,
दे सहारा उसको भी जो थका प्यासा घायल यदि कोई मिले,
चल पड़ेगा वो भी हारा पड़ा जो बस उसकी बांह गह ले,
तुझको भी तो साथी मिलेगा चल रहा था अब तक अकेले ।
तू है बटोही सिर्फ़ चलना ही तेरा कर्तव्य ठहरा,
न कर विश्राम न रुक कहीं भी और न ही तू कर बसेरा,
जो चुना पथ तूने अपना चलता रह बस उस पर निरन्तर,
ये निश्चित मान ले मिल जायेगा जो है गंतव्य तेरा ।
तू है बटोही सिर्फ़ चलना ही तेरा कर्तव्य ठहरा,
जवाब देंहटाएंन कर विश्राम न रुक कहीं भी और न ही तू कर बसेरा,
जो चुना पथ तूने अपना चलता रह बस उस पर निरन्तर,
ये निश्चित मान ले मिल जायेगा जो है गंतव्य तेरा ।
-बहुत सुन्दर भावपूर्ण संदेश.
गीत तो बहुत ही सुन्दर है , भाव भी अद्भुत हैं लेकिन पंक्तियो मे वज़न कुछ कम ज़्यादा हो रहा है
जवाब देंहटाएंतू है बटोही सिर्फ़ चलना ही तेरा कर्तव्य ठहरा,
जवाब देंहटाएंन कर विश्राम न रुक कहीं भी और न ही तू कर बसेरा,
जो चुना पथ तूने अपना चलता रह बस उस पर निरन्तर,
ये निश्चित मान ले मिल जायेगा जो है गंतव्य तेरा । nice