आज छुट्टी का दिन है । सुबह से ही मन अलसाया हुआ है । परन्तु थोड़ी देर से ही सही, उठा और नहा कर मंदिर भी हो आया । आज महाशिव रात्रि का पुण्य अवसर होने की वजह से बिना शिव जी को जल चढाये नाश्ता मिलने की गुंजाइश नहीं थी । मंदिर मे भीड़ मिलनी ही थी, करीब आधा घंटा लाइन मे लगने के बाद पूजा का अवसर मिला और धक्का मुक्की में किसी तरह शिव जी को जल चढ़ाया और त्रुटियों के लिए क्षमा मांग कर घर वापस आये तब जाकर नाश्ता मिला ।
अब खाली बैठे बैठे टीवी का रिमोट हाथ मे लिया देश दुनियां की खबर जानने के लिए, और पाया कि सारे चैनेलों पर बस एक ही खबर है - माइ नेम इज़ खान । आज की सबसे पहले खबर होनी चाहिए थी महाकुंभ का शाही स्नान , परन्तु आज मीडिया का फ़ोकस आज खान है । यह दूसरी बार हो रहा है जब त्योहार के दिन पूरा देश शाहरुख़ खान को लेकर मीडिया फ्रेन्जी का शिकार हो रहा है । लोगों को भूला नही होगा १५ अगस्त का दिन जब अमेरिका में सुरक्षा जांच को लेकर हंगामा हुआ था । उस समय जब यह आरोप लगा कि यह सब प्रचार के लिए हो रहा है तब शाहरुख़ पीछे हट गये थे परन्तु स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर इस बात पर जो मीडिया सर्कस हुआ उसने मज़ा किरकिरा कर दिया था । आज फिर महाशिवरात्रि पर उससे बढ़ कर हालात हैं । यह मामला जल्दी खतम भी नहीं होने वाला ।
मेरा मनना है कि शहरुख़, मीडिया और शिव सेना जैसे दल तीनो को एक दूसरे की आवश्यकता है । इससे मुफ़्त का प्रचार मिल रहा है, परन्तु देश का कीमती समय बेकार की बातों पर लग रहा है । यहां हजारों किसान आत्महत्या कर लें पर लोकतन्त्र खतरे मे नही पड़ता , आज लोकतंत्र पर खतरा और राष्ट्र का सम्मान जैसे शब्दों का इस्तेमाल इस तरह के मुद्दों पर कुछ अधिक ही होने लगता है । मैं शाहरुख़ का विरोधी नहीं , मै फिल्म का भी विरोधी नही और शिव सेना का समर्थक तो कभी भी नही । परन्तु यह कहना चाहता हूं कि यह बात इतनी बड़ी नही जितना महत्व दिया जा रहा है । मुझे लगता है कि कुछ वेस्टेड इन्टेरेस्ट ऐसे हैं जो चाहते हैं कि गैर बुनियादी सवालों पर अगर फ़ोकस रहे तो सबके लिए अच्छा है , सरकार के लिए भी ।
क्या कोई ऐसा उपाय नहीं जिससे हमारा ( खासकर मीडिया का ) फ़ोकस उसी मात्रा में हर बात पर जाये जितना आवश्यक है - यह प्रश्न मैं सबके लिए रख रहा हूं ।
baat focus tak hi hoti to phir baat hi kya thi,majra to kuch aur hi hai :)
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