मनुष्य जीवन भर मंजिल की तलाश में भागता है और मंजिल उससे दूर होती जाती है, जैसे जल की तलाश में मृग मरू भूमि में मरीचिका का अनुभव करता है,
संत कबीर के शब्दों में : पानी में है मीन पियासी
शनिवार, 8 अगस्त 2009
अनुराग
ये जो मेरे गालों का रंग गुलाबी हुआ, ये जो मेरी आँखों का रंग शराबी हुआ, ये जो मेरी चाल बदली सी है, ये जो मेरे हाल में बेसुधी सी है, कारण मुझसे क्या पूछते हो मेरे सांवरे , जब कि तुम भी जानते हो, वो तुम ही हो, जिसके लिए हम हुए हैं बावरे ।
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