मनुष्य जीवन भर मंजिल की तलाश में भागता है और मंजिल उससे दूर होती जाती है, जैसे जल की तलाश में मृग मरू भूमि में मरीचिका का अनुभव करता है,
संत कबीर के शब्दों में : पानी में है मीन पियासी
बुधवार, 12 अगस्त 2009
साथ
न उदात्त प्रेम, न अतिसय घृणा , न मिलन की उत्कट अभिलाषा, न वियोग का अत्यन्त क्लेश, फ़िर भी हम सब हैं सहयात्री , इस काल खंड में, यह नियति का है आर्शीवाद , या है अभिशाप, यह तो निर्धारित होगा , यात्रा में हमारे आचरण पर .
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