मनुष्य जीवन भर मंजिल की तलाश में भागता है और मंजिल उससे दूर होती जाती है, जैसे जल की तलाश में मृग मरू भूमि में मरीचिका का अनुभव करता है,
संत कबीर के शब्दों में : पानी में है मीन पियासी
शनिवार, 3 अप्रैल 2010
त्रयी
मन तो है बावरा, शांति की खोज मे , हो रहा है उतावला ।
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