शनिवार, 15 अगस्त 2009

प्रभु

तू है विराजमान हर कण में,
इस विश्वास में जीते हैं ,
तेरा वजूद एक भ्रम है,
ऐसा भी कुछ ज्ञानी कहते हैं ,
क्या तेरा होना सिर्फ़ भ्रम है ,
संसार माया नहीं सत्य है या,
सिर्फ़ तू सत्य है यह संसार माया है भ्रम है ,
तू आयेगा जब जब धर्मं की ग्लानि होगी ,
या है उपस्थित हर क्षण,
हर कण में निरंतर,
क्या मानूं की जब नहीं आया तो,
है सब धर्मयुक्त व्यवस्थित ,
हर तरफ़ फ़ैली यह अफ़रा - तफ़री भी,
और हर कण में तेरी उपस्थिति भी,
कैसे उपेक्षित करूं यह द्वंद ,
इस द्विविधा से हमें उबारने के लिए ,
अपने नियम को फ़िर से परिभाषित करने के लिए,
तू है अनादि अनंत अखंड अछेद अभेद सुवेद ,
यह सदैव को निर्धारित करने के लिए,
एक बार फ़िर से आओ मेरे प्रभु,
सत्य और भ्रम का भेद मिटाओ मेरे प्रभु ।