मरीचिका

मनुष्य जीवन भर मंजिल की तलाश में भागता है और मंजिल उससे दूर होती जाती है, जैसे जल की तलाश में मृग मरू भूमि में मरीचिका का अनुभव करता है, संत कबीर के शब्दों में : पानी में है मीन पियासी

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

वर्षा सुहानी आयी - मेरे फ़्लैट की बालकनी से

Posted by विजय प्रकाश सिंह at 8:40 pm 1 टिप्पणी:
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