शनिवार, 13 मार्च 2010

महिला आरक्षण, महंगाई, पिछड़ा और सेकुलर राजनीति - भाग १

यूपीए और श्री मनमोहन सिंह की दूसरी सरकार के एक वर्ष पूरे होने मे अभी कुछ महीने शेष हैं लेकिन इस बीच महौल राजनैतिक सरगर्मी से काफी भर गया है । यह किसी सरकार के लिए कुछ जल्दी लगता है क्योंकि पहले एक वर्ष या उससे कुछ ज्यादा ही समय तक अक्सर सरकारें हनीमून पीरियड का अनुभव करती हैं। वैसे तो समर्थक मीडिया के चलते श्री मनमोहन सिंह का पहला पूरा कार्यकाल हनीमून का रहा था क्योंकि मीडिया उनकी सरकार पर नज़र रखने के बज़ाय मुख्य विपक्षी दल भाजपा के पीछे पड़ा रहा था । परन्तु दूसरे कार्यकाल मे सरगर्मी कुछ जल्दी ही झेलनी पड़ रही है । इसका कारण है कि इस दस महीने मे महंगाई चरम पर पहुंच गयी है । सरकार अन्य वस्तुओं के दाम बढ़ने पर टरकाऊ जवाब दे कर बच निकलती है परन्तु खाद्य पदार्थों के दाम बेतहासा बढ़ने से अब यह संभव नही रहा । यह बात कृषि मंत्री शरद पवार के ज्योतिषी वाले जवाब के बाद सब समझ गये हैं ।

इस सबके साथ विपक्ष की पार्टियों मे अप्रत्यक्ष समझौते के तहत एकजुटता दिखी । इससे निपटने के लिए सरकार ने पहले वही पिछले १५ सालों से कामयाब फार्मूले का सहारा लिया कि भारतीय जनता पार्टी के साथ सेकुलर फोर्सेस कैसे खड़ी नज़र आयेंगी? लेकिन बात यह है कि महंगाई एक सर्वव्यापी विषय है जिसका असर सब पर पड़ता है इसलिए सारे विपक्षी दल सेकुलरिज्म की छूआछूत से परे हट कर, एक साथ दिख सकते हैं । साथ ही सरकार को कटघरे मे खड़े करने का इससे अच्छा मौका नहीं हो सकता था और इसका लाभ विपक्ष ने उठाया । यह खबर भी जोरशोर से आ रही थी कि सारे दल मिल कर फ़ाइनेंस बिल पर कट मोसन लायेंगे । ऐसे मे साफ था कि विपक्षी एकता न टूटी तो सरकार गिर भी सकती है या छोटे छोटे दलों के हाथ ब्लैक मेल हो सकती है। इसी समय कुछ टीवी कार्यक्रमों के ज़रिये इस तरह के सवाल उठा कर महौल बनाने की कोशिश भी हुई कि कम्युनिस्ट और लालू, मुलायम कैसे भाजपा के साथ खड़े होगें लेकिन इसका असर न होते देख सरकार की ओर से एक धमाकेदार खबर आयी कि सरकार लोक सभा और विधान सभाओं मे महिलाओं को ३३% सीटें आरक्षित करने वाले महिला आरक्षण बिल को संसद के इसी सत्र मे पास करवायेगी ।

जो पहला सवाल मेरे मन मे आया कि इस बजट सत्र मे जहां सरकार की प्राथमिकता फ़ाइनेंस बिल होना चाहिए वहां यह नया फ़ोकस क्यों ? इस तरह का तुरत फ़ुरत का धमाकेदार निर्णय निकट के इतिहास मे एक बार पहले भी हो चुका है जब १९८९ मे तत्कालीन प्रधान मंत्री वी पी सिंह ने अपने सहयोगी से दुश्मन बने देवी लाल की किसान रैली के उत्तर में, रातों रात मंडल कमीशन लागू करने की घोषणा करके पिछडों का मसीहा बनने की कोशिश की थी । इस प्रक्रिया में पिछडे वर्ग के सारे नेता देवी लाल से अलग हो गये थे जैसे लालू, मुलायम, शरद और नितीश । सभी जानते हैं कि श्री वी पी सिंह को इसका लाभ तो नहीं हुआ लेकिन उस राजनीति का असर गया नहीं है । इस पर चर्चा दूसरे भाग मे करेंगे ।

यह तो साफ ज़ाहिर है कि सरकार सोचती है कि इस बात पर हंगामा होगा । भाजपा कभी कांग्रेस के साथ मिल कर किसी बिल पर वोट नहीं करना चाहेगी और बहाने बनायेगी , साथ ही लालू मुलायम भी इसका समर्थन नहीं करेगें। इस अफ़रा तफ़री के महौल मे महंगाई की चर्चा नेपथ्य मे चली जायेगी । ऐसा कुछ हद तक हो भी गया लेकिन एक दांव उल्टा पड़ गया जब सरकार के समर्थक वर्ग भी उसकी नीयत पर सवाल उठाने लगे। यहीं सरकार घिर गयी, अब उसे अपनी साख बचाने के लिए राज्यसभा मे वोटिंग करवाने के लिए बाध्य होना पड़ा । इसमे फायदा उठाने के इरादे से यह प्रचारित करना शुरू किया गया कि श्रीमती सोनिया गांधी ने इस बिल को अपना निजी एजेंडा बना लिया है। राज्यसभा में वोटिंग के बाद श्रीमती सोनिया गांधी पहली बार खुल कर टीवी पर आयीं और अपने पसंदीदा चैनेल एनडीटीवी की बरखा दत्त को इंटरव्यू भी दिया और साथ ही संसद के बाहर सारे चैनेल्स को न्यूज बाइट भी दी । यह क्रेडिट लेने की जबरदस्त कोशिश थी जिसमे प्रधानमंत्री जी गायब दिखे और मीडिया ने इसका नोटिस भी लिया ।

इसके साथ एक कोलेट्रल डैमेज हुआ जिसमे सरकार को अपने ही मित्र पार्टियों के सांसदो को मार्शलों द्वारा सदन के बाहर निकलवाना पड़ा, जिससे उसके दोस्त बिदकते नज़र आ रहे हैं, उन्होने अपना समर्थन वापस ले लिया है । सरकार एक या दो सीटों से ही बहुमत मे बची है। ऐसे हालात में सरकार को हमेशा बचाव की मुद्रा मे रहना पड़ेगा । जिस बात से बचने के लिए महिला आरक्षण बिल को लाया गया वह स्थिति अब हमेशा खड़ी रहेगी । ऐसे हालात मे अब यह साफ नज़र आ रहा है कि कांग्रेस समझदारी दिखा रही है और जैसा १९८९ मे श्री वी पी सिंह ने किया था, उसके उलट कांग्रेस बात को ज्यादा दूर नहीं ले जायेगी । इस तरह ऐसा लगता है कि महिला आरक्षण विधेयक अब फिर एक बार सर्वानुमति की कोशिश के नाम पर लोकसभा मे या तो पेश ही नहीं होगा या पेश हुआ भी तो पास नहीं होगा और लटका रहेगा ।

(महिला आरक्षण बिल के केंद्र बिंदु बनने से संभावित दूरगामी राजनैतिक परिणाम पर विचार अगले भाग मे प्रस्तुत करूंगा )