बुधवार, 5 अगस्त 2009

हार या जीत

किस हार में छुपी है जीत ,
और किस जीत में छुपी है हार ,
इस हार जीत में उलझा है जीवन,
भ्रमित हुआ है अंतर्मन ।

जिस जीत से गर्वित हो कर,
चंहु ओर फिरता था कल तक ,
आज मन पछताता है यह पाकर ,
था वह एक पड़ाव न कि मंजिल।

हमें कोशिशें जारी रखनी थी,
नयी मंजिलों की राह में ,
कोशिशें नयी राहों की खोज में ,
कोशिशें नए सह यात्रियों से सहयोग में।

क्यों नही समझ पाया यह सत्य,
न हार महत्व पूर्ण है न जीत,
सिर्फ़ कोशिश महत्वपूर्ण है,
वह भी अविरल अविकल ।

हर हार के बाद जीत है ,
हर जीत के बाद हार ,
हर जीत के बाद और भी जीतें हैं ,
हर हार के बाद और भी हारें ।

कुछ भी अन्तिम नहीं है,
सिर्फ़ कोशिश के सिवा,
न हार , न जीत, न पड़ाव , न मंजिल ,
सृष्टि चक्र के ओर से छोर तक ॥

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर. आभार.

    चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

    गुलमोहर का फूल

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  2. मुझे आपके इस सुन्‍दर से ब्‍लाग को देखने का अवसर मिला, नाम के अनुरूप बहुत ही खूबसूरती के साथ आपने इन्‍हें प्रस्‍तुत किया आभार् !!

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  3. स्‍वागत सिंह साहब. इस सुन्‍दर कविता के लिए धन्‍यवाद.

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