शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

जहां जन्म की ठांव

पिछले दिनों मैं अपने शहर सुल्तानपुर गया था, जो लोग नहीं जानते हों , इसी जिले की अमेठी सीट से श्री राहुल गांधी लोक सभा सांसद हैं । अमेठी से पहले श्री संजय गांधी, श्री राजीव गांधी और श्रीमती सोनिया गांधी सांसद रह चुके हैं ।

चाहे शिव सेना और राज ठाकरे की "मनसे" कुछ भी कहे लेकिन जिस भूमि मे पैदा हुए और बचपन बीता वहां के लिए मन में अज़ब सा प्रेम भरा उत्साह हमेशा रहता है ।

एक नाराजगी भरा दोहा महा कवि रहीम का भी है :

रहिमन वहां न जाइये जहां जन्म की ठांव,
गुन अवगुन देखत नहीं लेत पाछिलो नांव ।


वैसे कवि रहीम ने यह बात दूसरे संदर्भ मे कही , उन्हे इस बात का सर्टिफिकेट नहीं देना था कि आप जन्म भूमि और कर्म भूमि मे किसे ज्यादा महत्व देते हैं बल्कि उन्हे शायद यह मलाल था कि अपने जीवन मे कितने ऊचें मकाम तक पहुंच जाओ, बचपन के मित्र बचपन वाले तरह से व्यवहार करते हैं । जबकि मुंशी प्रेमचन्द ने "गुल्ली डंडा" कहानी मे इसके विपरीत अनुभव लिखा, जहां नायक यह पाता है कि जब वह बड़ा अफ़सर बनने के बाद गांव जाता है तो बचपन का उसका दोस्त, जो अभी भी गांव मे रहता है उससे जान बूझ कर गुल्ली डंडे के खेल मे हार जाता है । इस बात से नायक दुखी होता है । खैर दोनो बातें अपनी तरह से ठीक हैं, हम सबको दोनो तरह के अनुभव होते रहते हैं।

मुझे यह दोनो बातें इस लिए याद आयीं क्योंकि इस यात्रा मे मैं अपने बाल सखा और अब सुल्तानपुर स्थित के एन आई आई टी के डायरेक्टर प्रोफ़ेसर ( डॉ ) के. एस. वर्मा से करीब पन्द्रह वर्ष बाद मिला, समयाभाव के कारण मुलाकात केवल पंद्रह बीस मिनट की रही और मुझे यह लगा कि शायद हम दोनो ही बचपन से आगे निकल आये हैं और कितना खुल कर कैसे व्यवहार करें इसकी द्विविधा महसूस कर रहे हैं ।

इन बातों से इतर, मैने कुछ फोटो अपने मोबाइल से लिए , जो नीचे दे रहा हूं, जो लोग सुल्तानपुर से हैं या कभी गये हैं उनकी याद ताज़ा हो जायेगी और जो नहीं गये उन्हे अपने शहर का चौक याद आ जायेगा । इस वसंत ऋतु में सरसों के पीले फूलों वाले खेत भी याद आ जायेंगे ।




सुल्तानपुर चौक






गुड़ मंडी के पास के बाज़ार की गलियां





वसंत ऋतु में सरसों के खेत



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