सोमवार, 22 मार्च 2010

डेविड कोलमैन हेडली की स्वीकारोक्ति ( 2 ) - परिप्रेक्ष : भारतीय न्यायिक व्यवस्था

दूसरा विचार यह मन मे आता है कि हैडली ने पकडे जाने के चंद दिनों के भीतर अपना अपराध मान लिया इसे चमत्कार ही कहूंगा क्यों कि उसके आतंकवादी गुट का एक अदना सदस्य यानी फुट सोल्ज़र , आमिर कसा़ब ने भारतीय एजेंसियों के सामने व कोर्ट की कार्यवायी के दौरान ऐसी ऐसी कहानियां व घुमावदार बयान दिये कि बड़े से बड़ा उपन्यासकार भी बगले झांकने पर मज़बूर हो जाय ।

हम लोग इससे क्या समझें कि हैडली कच्चा खिलाड़ी है और कसाब पक्का या हैडली यह बात जानता है कि अमेरिका मे जांच , मुकदमा ,उस पर फ़ैसला और फ़ैसले पर अमल एक निश्चित अवधि के भीतर हो जायेगा । जब कि भारत मे पहले तो जांच पर उंगली उठेगी, फिर मुकदमे की कार्यवायी के दौरान अनेक कारण गिना कर या बिना किसी कारण के ही उसे असीमित अवधि तक खींचा जा सकता है । एक बार फ़ैसला आ भी जाये तो अपीलें होगीं और उनके खिलाफ फिर से अपीलें होगीं । सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले के बाद भी उस पर अमल होना असंभव है । यह बात केवल आलोचना के लिए नहीं लिख रहा हूं , अफ़जल गुरू के मामले मे पूरा देश देख रहा है कि यहां के कुछ एन जी ओ व तथाकथित सेकुलर लोग यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि न्याय हुआ है । वह चाहते हैं कि जांच दोबारा हो , फिर से मुकदमा चले यानी न्याय वही जो उनके मन भाये । जब तक वह फ़ैसला नहीं आयेगा तब तक कोई बात नहीं मानी जायेगी । उससे भी बढ़ कर इस देश की सरकार व उनकी सबसे सफल कांग्रेसी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने मिल कर लगभग तीन सालों से अफ़ज़ल गुरू की फ़ाइल रोक रखी है । यानी फ़ैसले पर अमल नहीं होने दिया जा रहा है । जनता भी इससे खुश ही होगी यानी बहुमत वाले लोग अवश्य खुश होगें तभी तो उन्हे चुन रहे हैं । राजनीतिज्ञ तो कुर्सी देख कर ही काम करते हैं , अगर उन्हे ऐसे निर्णय को लटका कर रखने से कुर्सी मिल रही है तो वे क्यों निर्णय करेंगें ।

हमारी पूरी व्यवस्था ढुलमुल तरीके से चल रही है । न्याय के नाम पर मज़ाक हो रहा है । पूरा तंत्र केवल और केवल अपराधियों और जालसाजों को लाभ पहुंचा रहा है । केवल आदर्शवाद कीए बातें ही रह गयी हैं । मामला इतना बिगड़ गया है कि जहां हाथ डाल दो आप को सड़ांध ही मिलेगी । आम जनता को भरोसा नहीं है कि वह सुबह घर से निकल रही है तो शाम को वापस आयेगी कि नहीं लेकिन फिर भी जनता ज्यादा चिन्ता मे दुबली नहीं हो रही है । वे सोचते हैं जो मरे वे कोई मेरे रिश्तेदार तो थे नहीं , उन्हे शमशान पहुंचाने तक शोक मना लिया बस अब क्यों बेकार का रोना । राजनेताओं के बारे मे जो कहें वह थोड़ा है, हम रोज टीवी पर देखते हैं कि वे किसी भी गंभीर विषय पर ऐसे बात करते हैं जैसे किसी मुहल्ले की लड़ाकू औरतें शाम को लड़ती हैं ।

इन सारी बातों को हैडली और कसाब जैसे लोग अच्छी तरह जानते हैं इस लिए वे अमेरिका में कानून और न्यायालय से डरेगें लेकिन भारत में न्याय प्रक्रिया के दौरान मज़ाक बनायेंगे, मुस्करायेंगे और कहानियां सुनायेंगे साथ ही खाने मे बिरियानी, देखने के लिए टीवी और शायद एसी वाला कमरा भी मागेंगे ।



(हम एक अन्य पहलू पर विचार अगले हिस्से मे करेगें )

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय मित्र, जो नॉर्वे ( ओस्लो ) से पढ़ रहे हैं , सस्नेह प्रार्थना है कि टिप्पड़ी तो करें , आप के विचार हमे और प्रेरित करेंगें । धन्यवाद ।

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  2. भारतीय नागरिक जी, पसंद करने के लिए धन्यवाद, आपके शब्द ही हमारी प्रेरणा है । मै अपने विचार हमेशा मध्य मार्गी ही रखता हूं, अतिवाद से बचता हूं ।

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