रविवार, 18 अप्रैल 2010

आईपीएल , शशि थरूर और फ़िराक गोरखपुरी की कथा

आज सबसे ज्यादा चर्चा खबरिया चैनेलों पर आईपीएल की हो रही है , दांतेवाड़ा पर कम और सुनन्दा पुश्कर पर ज्यादा समय लगा रहा है मीडिया । इस बीच थरूर साहेब सफाई दे रहे हैं कभी चैनेलों पर , कभी संसद को , कभी वित्त मंत्री को , कभी कांग्रेस अध्यक्ष को और अब प्रधान मंत्री को । बेचारे समझ नही पा रहे है कि उन्होने क्या गलती कर दी । इतने सुलझे हुए अधिकारी थे , यूएनओ मे पूरा कैरियर बिता कर आये , सारे विश्व के मीडिया की समझ रखते हैं , भाग्य साथ होता तो यूएन के सेक्रेटरी जनरल होते और पूरी दुनिया के मीडिया को संभाल रहे होते । लेकिन बेचारे जबसे मंत्री बने हैं एक कंट्रोवर्सी से दूसरी कंट्रोवर्सी मे फंसते और बचते समय बिता रहे हैं ।

थरूर साहेब बार बार कह रहे हैं कि सुनन्दा मेरी मित्र तो हैं मगर कोई रिश्ता नही है मतलब पत्नी नहीं हैं । वे बार बार समझा रहे हैं कि वे विदेश राज्य मंत्री हैं और आईपीएल उनके मंत्रालय का मामला नहीं है, लेकिन मीडिया के मित्रगण यह सब मानने और समझने को तैयार नही हैं । उनकी समझ मे यह भी नही आ रहा कि सुनन्दा को लाभ मिलने मे क्या गलत बात है ? आखिर पत्नी को लाभ दिलवाते तो गलत हो सकता था लेकिन महिला मित्र को लाभ कानूनी नज़र से घूस तो नहीं कहा जा सकता । अब नैतिकता का मुद्दा मत उठाइये वह तो केवल विरोधियों के लिए होता है ।

इस बात पर मुझे , बचपन मे हिंदी की मशहूर पत्रिका धर्मयुग मे फ़िराक गोरखपुरी साहेब के बारे मे छपा एक किस्सा जो उनके भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के अवसर का है वह स्मरण हो आया । उन्होने उस समय मंच से एक किस्सा सुनाया था जो कुछ इस तरह है :

एक बार एक नगर मे कुछ लोगों ने यह विचार किया कि अपने शहर की विधवा महिलाओं के कल्याण के लिए कुछ करना चाहिए । लोगों ने तुरन्त एक विधवा कल्याण नाम से संस्था बना दी और नगर के एक बड़े समाजसेवक को इसका प्रधान नियुक्त कर दिया । उत्साही लोगों ने मिलकर घर घर जा कर इस संस्था के लिए चंदा भी इकट्टा किया । काफी धन इकट्ठा हो जाने के बाद लोगों ने सब कुछ प्रधान जी को सुपुर्द कर दिया । बहुत समय बीत गया तो लोगों को ध्यान आया कि प्रधान जी से जा कर मिला जाय और पता किया जाय कि विधवा कल्याण पर उन्होने क्या कदम उठाये हैं और भविष्य के लिए उनकी क्या योजना है । कई लोग प्रधान जी से मिलने उनके घर गये और शिकायत किया कि धन का क्या हुआ और वे उसे कैसे खर्च कर रहे हैं ?

प्रधान जी ने जवाब दिया - मित्रों , धन पूरी तरह सुरक्षित है और बैंक मे वैसा ही पड़ा है आप लोग बिल्कुल चिन्तित न होवें इसका सदुपयोग भी विधवा कल्याण के लिए ही होगा ’आखिर जब मैं मरूंगा तो मेरी पत्नी विधवा होगी कि नही’ ।

तो साहब थरूर हों , ललित मोदी हों या कोई और हो , खेल मे क्या रुचि ले रहा है और खेल का कितना कल्याण कर रहा है उसका तो पता नहीं लेकिन यह बिल्कुल स्पष्ट है कि अपने रिश्तेदारों और बेनामी तरीके से अपना कल्याण कर रहा है इसमे कोई दो राय नहीं है ।

सबसे बड़ी बात - इस तमाशे को टैक्स मे छूट दिया जा रहा है । यानी लूट चौतरफा ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. फिराक साहब का किस्सा कितना सही बैठा यहाँ पर..

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  2. जी समीर भाई, लेकिन थरूर जी नही समझ रहे कि ये पब्लिक है सब जानती है ।

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  3. आपकी पैनी नज़र और तेज़ कलम से बच न पाए, बहुत उम्दा और सामयिक लेख है।

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